पिछले साल 10 जुलाई को अनुभूति शांडिल्य 'तीस्ता' ने अपने फ़ेसबुक पेज
पर सावन को समर्पित ये लाइनें लिखी थीं. कमेंट बॉक्स में संजय कुमार पांडेय
नाम के एक शख़्स के पूछने पर कि इस गीत का ऑडियो वर्जन कब आएगा, तीस्ता ने
जवाब दिया था कि जल्दी ही निकलने वाला है.
अब तो इस साल का सावन भी बीत गया, लेकिन इस गीत का ऑडियो कहां है? पता
कैसे चलेगा? फ़ेसबुक स्क्रॉल करते-करते नज़र तीस्ता के भाई उद्भव शांडिल्य
की एक पोस्ट पर गई. इस साल के सावन के बीत जाने के अगले दिन यानी 27 अगस्त
को उद्भव फ़ेसबुक पर लिखते हैं-
"लौट आओ मेरी अपराजिता"
भैया तुमसे साहित्य पढ़ने आया है और तुम्हारे लिए ब्रिटैनिया का केक भी लाया है.
27
अगस्त की शाम उद्भव शांडिल्य पटना एम्स में भर्ती अपनी बहन तीस्ता को
देखने गए थे. तब तक डॉक्टरों ने कह दिया था शरीर के सारे ऑर्गन फेल हो चुके
हैं. केस अब हाथ के बाहर है. फिर भी भाई उद्भव को न जाने क्यों लग रहा था
कि बहन जिसको वह "अपराजिता" कहा करता था, लौट कर आएगी.पिछले एक हफ़्ते से सोशल मीडिया पर सक्रिय भोजपुरिया समाज जिस तीस्ता की
सलामती की दुआएं मांग रहा था, जिस तीस्ता के लिए लोकगायिका पद्म श्री शारदा
सिन्हा और भोजपुरी के लोकप्रिय गायक भरत शर्मा "व्यास" सरीखे कलाकारों ने
भी मदद के लिए गुहार लगाई थी और जिस तीस्ता की मृत्यु के बाद सोशल मीडिया
पर यह पढ़ने को मिल रहा था-
पिता उदय नारायण सिंह ने फ़ेसबुक पर 28 अगस्त की शाम एक पोस्ट लिखी था. उन्होंने लिखा कि "तीस्ता ना रहली (तीस्ता नहीं रही)".
उनके
इतना कहने के बाद से ही सोशल मीडिया पर लोग तीस्ता को श्रद्धांजलि देने
लगे हैं. बिहार और भोजपुर के कला जगत से जुड़े लोग तीस्ता के जाने को
लोकागाथा गायन की संस्कृति के लिए एक अपूरणीय क्षति बता रहे हैं.
तीस्ता
का असल नाम अनुभूति शांडिल्य है. उम्र महज 17 साल. इसी साल बिहार बोर्ड से
12वीं की परीक्षा पास की थीं. फ़ेसबुक से जो कुछ पता चल पाया उसके अनुसार
"तीस्ता" लोकगाथा गायन की पारंपरिक व्यास शैली का पालन करते हुए कुंवर सिंह
की वीरगाथा गाती थीं.
बिहार में छपरा ज़िले के रिविलगंज की रहने वाली तीस्ता के पिता उदय
नारायण सिंह ख़ुद भी संगीत के शिक्षक हैं. कई कार्यक्रमों में आयोजित
तीस्ता की प्रस्तुतियों में मंच पर वो भी अपनी बेटी के साथ नज़र आते थे.
महज
13 साल की उम्र में तीस्ता ने पहली बार मैथिली-भोजपुरी अकादमी की तरफ़ से
आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी गायन शैली और भावपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति से
सबका दिल जीत लिया था.
इमेज कॉपीरइट देवेंद्र आगे कहते हैं, "ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वो उसकी पहली
प्रस्तुति थी. मुझे याद है कि वहां मौजूद कला समीक्षक डॉ धीरेंद्र मिश्रा
ने मंच से यह कहा था कि अनुभूति के रूप में भोजपुरी को "तीजनबाई" मिली है.
क्योंकि वह न सिर्फ़ अपनी खनकती आवाज़ में गा रही थी, बल्कि भावमय नृत्य से
सीधे श्रोताओं और दर्शकों के दिलों में उतर भी रही थी.''
तीस्ता की अधिकांश प्रस्तुति छत्तीसगढ़ की लोकगायिका तीजनबाई की
पांडवानी शैली में होती थी. इसमें महिलाएं पुरुषों की कापालिक गायन शैली की
तरह भावमय नृत्य के साथ खड़े होकर प्रस्तुति देती है.
बिहार और
भोजपुरी के लोकगायन के क्षेत्र में 17 साल की एक लड़की अपनी तरह का अनोखा
प्रयोग कर रही थी. इसलिए लोग उसे बिहार की तीजनबाई कहकर पुकारते हैं.
अनुभूति
शांडिल्य यानी तीस्ता के उस पहले प्रदर्शन का क़िस्सा सुनाते हुए देवेंद्र
नाथ तिवारी कहते हैं, "उस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री
रामबहादुर राय भी थे. तीस्ता की प्रस्तुति देखन के बाद भावविभोर हो उठे.
कहने लगे कि भोजपुरी प्रतिभा की खान है. तीस्ता को गाते हुए देखकर ये
विश्वास अब और भी पुख्ता हो गया है. उन्होंने तो उसी दिन ही कह दिया था कि
यह भोजपुरी संस्कृति की सबसे कम उम्र की संस्कृति दूत है, बड़े मंचों की
कलाकार है."
E
दिल्ली के पालम स्थित दादा देव ग्राउंड में आयोजित उस कार्यक्रम में
भोजपुरी लोकगायन की पारंपरिक व्यास शैली में कुंवर सिंह की वीरगाथा गाकर
तीस्ता ने उसी दिन कला जगत में अपनी पहचान बना ली थी.
तीस्ता के उस
पहले परफॉर्मेंस के साक्षी रहे देवेंद्र नाथ तिवारी याद करते हुए कहते हैं,
"उतनी कम उम्र में उस बच्ची के लय, ताल, आरोह, अवरोह, भाव, मुद्रा और रस की समझ को देखकर सभी हतप्रभ थे. तीन दिनों तक चले उस कार्यक्रम में अनभूति
ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन बेहद कुशलता से किया था."
महज 17 साल की उम्र में किसी भी लोकगायिका के लिए "बिहार की तीजनबाई"
जैसा उपनाम पा जाना कोई खेल नहीं है. पिता उदय नारायण सिंह के मित्र और
वरिष्ठ पत्रकार निराला बिदेशिया कहते हैं कि "तीस्ता ईश्वरीय देन थी. इतनी
कम उम्र में भी वह बदलाव को महसूस कर रही थी. इसलिए उसने लीक से हटकर
लोकगाथा और लोकगीतों के गायन की परंपरा को चुना."
निराला कहते हैं,
"इतना समझ लीजिए कि भोजपुरी इस समय कला और संस्कृति के मामले में
संकटग्रस्त है. चारों तरफ़ अश्लीलता का भौंडा प्रदर्शन हो रहा है. शारदा
सिन्हा, भरत शर्मा व्यास, चंदन तिवारी जैसे उंगली पर गिने जाने भर लोग ही
बचे हैं जो भोजपुरी की संस्कृति और कला को स्थापित करने की लड़ाई लड़ रहे
हैं. तीस्ता उन्हीं में से एक थी.''
इतनी कम उम्र में कहां से मिली तीस्ता को इतनी प्रवीणता! इस सवाल का
जवाब यशवंत मिश्रा से बेहतर कौन बना सकता है जो दस दिनों तक पटना एम्स में
भर्ती तीस्ता के साथ हर पल मौजूद रहे और पिता उदय नारायण सिंह का हौसला
बढ़ाते रहे.
वो कहते हैं, ''उदयनारायण ख़ुद एक मंझे हुए लोकगायक और
संगीत के शिक्षक हैं. इस तरह संगीत तो तीस्ता को विरासत में ही मिला था. आप
कह सकते हैं कि वो उदय नारायण सिंह की आवाज़ थी. लोकगाथा और लोकगीतों के
गायन की सीख उसे पिता से ही मिली है. संगीत पिता का होता था और बोल बेटी के
होते थे. दोनों की अद्भुत जुगलबंदी थी.''
पिता उदय नारायण को दो दिन पहले ही मालूम चल गया था कि तीस्ता अब जीवन
की आख़िरी सांस ले रही है. डॉक्टरों ने असमर्थता ज़ाहिर कर दी थी. उन्होंने
बीबीसी के साथ बातचीत में कहा कि पटना एम्स प्रबंधन ने अपनी समर्थता तक हर
संभव कोशिशें की. मगर लगातार बुखार रहने के कारण किडनी और लिवर बुरी तरह
से प्रभावित हो गए थे.
तीस्ता के असमय इस दुनिया को छोड़ कर चले
जाने के मायने उदय नारायण सिंह के लिए बिल्कुल अलग हैं. तीस्ता के गुरु और
पिता की संयुक्त भूमिका निभाने वाले उदय नारायण सिंह को दोहरा सदमा लगा है.
बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि वे तीस्ता के साथ लेकर
कई प्रोजेक्ट्स में लगे थे. गंगा गाथा से लेकर द्रौपदी और कृष्ण गाथा तक
आना बाकी था. अब तीस्ता ही नहीं है तो गाथा कौन गाएगी.
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